Saturday 10 December 2011

बढ़ रहा कमाई का लालच


भगवान के बाद हम डॉक्टर  को ही दूसरा भगवान मानते है । क्योंकि किसी भी खतरनाक हादसे के बाद  वही हमको जीवन दान देता है। लेकिन आजकल अधिकतर डॉक्टर ने इसे पैसा कमाने का धंधा बना लिया है । जिनका धर्म मानव सेवा नही, मात्र पैसा कमाना रह गया है । चिकित्सा की पढ़ाई में लगने वाला डोनेशन ,महंगी फीस जमा कर आजकल लोग अपने बच्चो को डॉक्टर बना रहे हैं। इसलिए उनका और उनके परिजनों का  मकसद जल्दी जल्दी पैसा कमाना और अपने खर्च की भरपाई करना होता है। उसके लिए भ्रूण हत्या ,अनावश्यक आॅपरेशन ,कमीशन के लालच में महंगी दवाईयां लिखना इत्यादि कुकृत्य करते हैं। 



सरकारी नौकरी में होकर भी प्रायवेट प्रेक्टिस करना, प्रायवेट नर्सिंग होम में अपनी सेवा देना, सरकारी नौकरी में अनियमितता पूर्ण कार्यों को बढ़ावा देना ,जैसे कई आपराधिक कृत्य अपना लेते है। कुछ को छोड़ दें तो बाकि का ईमान ही पैसा होता है । इसलिए आज डॉक्टर के प्रति लोगों का सम्मान घटा और नफरत बढ़ी है। जिसका नतीजा है कि शासकीय व निजी चिकित्सकों के साथ आए दिन मारपीट व अभद्र व्यवहार की घटना सामने आती हैं। 


  गांव की महिला जिसकी बच्चादानी आधी बाहर आ चुकी थी । वह खून में लथपथ तड़प रही थी । उसके परिजन उसे शहर के प्रायवेट अस्पताल ले गए। वहां डॉक्टर  ने उनसे 15 हजार रुपए मांगे। महिला के परिजन के पास इतने रुपए नही थे। वह महिला क ो सरकारी अस्पताल ले गए । वहां पर भी 5 हजार रुपए डॉक्टर ने जमा करवाएं फिर आपरेशन किया।       


    
पड़ोस में रहने वाली आंटी अपनी बहू की डिलीवरी क रवाने के लिए जिला अस्पताल गईं। उन्होंने पर्ची बनवाई तभी एक नर्स आई और उनकी बहू को डिलीवरी के लिए आॅपरेशन थिएटर ले गई। कुछ देर बाद नर्स बाहर आकर कहने लगी 3 हजार रुपए जमा करवाइए तभी आपकी बहू की डिलीवरी करवाएंगे। उस परिस्थिति में वे  क्या करती? उन्होंने तीन हजार रुपए दिए तब जाकर उनकी बहू की डिलीवरी हो पाई।   


इसी तरह वार्ड में लेटी एक महिला की गंभीर हालत थी। उसे तकलीफ हो रही थी। उसके परिजन नर्स क ो बुलाने गए तो नर्स ने अनसुना कर दिया । वापस बुलाने गए तब कह दिया कि आ रहे है , किंतु फिर भी नही आई। एक बार फिर बुलाने गए तब नर्स उनसे अपशब्द कहने लगी - इतने बच्चे क्यों पैदा करती हो,जब इतनी जल्दी है तो किसी प्रायवेट अस्पताल ले जाना था यहां क्यों आ गई।   
ये सीन किसी फिल्म की स्टोरी के नहीं है। ये सीन हर दिन आपको सरकारी अस्पतालों में देखने को मिल जाएंगे । सरकारी अस्पतालों में जगह जगह दीवारों पर लिखे हुए है - दवाईयां अस्पताल से दी जाएंगी। बाजार की दवाइयॉ न लाएं। यहां मुफ्त इलाज होता है डॉक्टर को रुपए देना दण्डनीय अपराध है। मप्र सरकार की जननी कल्याण योजना से 33 लाख महिलाएं लाभांवित हुई हैं। इस तरह की कई योजनाओं का वर्णन किया गया है। योजना के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्र की गर्भवती महिला को सरकारी अस्पताल में प्रसव कराने पर 14 सौ रुपए दिए जाते हैं। शहर की महिला को एक हजार रुपए शासन की तरफ से दिए जाते है। बीपीएल परिवारों का निशुल्क ईलाज किया जाएगा। नि:शुल्क जांच दवाईयां, निशुल्क कृत्रिम अंग -उपकरण एवं निशुल्क परिवहन की सुविधा उपलब्ध करवाई जाएगी। लेकिन हकीकतन ऐसा नहीं होता है। ये स्लोगन केवल लिखने-पढ़ने के लिए हैं, इन पर अमल नहीं होता।



आदिवासी महिला राधा का कहना है कि नर्से उनसे बुरा बर्ताव करती है गालियां देती है। यहां के सफाई वाले भी हमारे साथ गाली गलौज करते हैं। हमसे दवाईयां भी बाहर से लाने को कहते है। नीता(बदला हुआ नाम) का कहना है कि जब डिलीवरी के लिए वह जिला अस्पताल पहुंची। डॉक्टर को दिखाया। डॉक्टर ने बताया नार्मल डिलीवरी होगी आप भर्ती हो जाइए। कुछ समय बाद दूसरी डॉक्टर देखती हैं और कहती हैं कि आपका बच्चा आॅपरेशन से होगा। अभी आपरेशन करना होगा क्योंकि इमर्जेंसी केस है। आप तीन हजार रुपए जमा करवाइए वरना बच्चा मर जाएगा। उसके परिजन ने तुरंत रुपए जमा कर दिए। शाम को जब पहली डॉक्टर आती है वह कहती है कि आपकी तो नार्मल डिलीवरी होनी थी आप और आपका बच्चा तो ठीक था। नीता बताती है कि दुसरी डॉक्टर ने आॅपरेशन किया। वह डॉक्टर दूसरी डॉक्टर  से पूछती है तो वह  कहती है यह तो -एम.फेलो-(रुपए देने वाले) महिला थी। कुछ डॉक्टर रुपए लेने के लिए नार्मल को भी सीजेरियन बता देते है ।
 

1 comment:

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