Saturday 3 December 2011

नेताओं के लिए दुधारू गाय है एसएटीआई


नेताओं को रोजगार देता है ये इंजीनियरिंग कॉलेज

जीवाजी सोसायटी के सभी तीनों कॉलेजों में एसएटीआई विदिशा में तीन गुना नॉन टीचिंग स्टॉफ, अपनों पर लुटाए जा रहे करोड़ों रुपए
इंट्रो:
नेताओं को पालने के लिए अब इंजीनियरिंग के छात्रों से वसूली की जाएगी। इसके लिए हर छात्र की फीस में दोगुनी से ज्यादा वृद्धि की जा रही है। ये कारनामा हुआ है (सम्राट अशोक अभियांत्रिकीय संस्थान) एसएटीआई विदिशा में। नॉन टीचिंग स्टॉफ के नाम पर राजनीतिक दलों के पदाधिकारियों से लेकर कार्यकर्ताओं को पालने के लिए एसएटीआई सालाना 634 लाख रुपए खर्च कर रहा है। जबकि नियमानुसार टीचिंग स्टॉफ के खर्च से नॉन टीचिंग स्टाफ का खर्च आधा होना चाहिए। प्रदेश सरकार से अनुदान और छात्रों से ली जाने वाली शुल्क से नेताओं को पालने में परेशानी आई तो छात्रों पर बोझ डाला जा रहा है। राजनीतिक कारस्तानियों के चलते नेताओं का पालनहार बने एसएटीआई कॉलेज और छात्रों के शोषण की पोल खोलती प्रमोद त्रिवेदी की विशेष खबर
भोपाल।
जीवाजी सोसायटी का एक इंजीनियरिंग कॉलेज ऐसा है जो नेताओं को रोजगार देता है। एसएटीआई कॉलेज विदिशा टीचिंग फैकल्टी के मामले में भले ही समझौता कर ले, लेकिन ‘अपनो’ को पालने के लिए नॉन टीचिंग स्टॉफ रखने में अव्वल हो गया है। महंगाई बढ़ने पर हर माह मिलने वाले वेतन से नेताओं का पेट नहीं भरा तो छठवां वेतनमान के हिसाब से वेतन मांगा गया। इस वेतन को देने में पहले से नॉन टीचिंग स्टाफ पर खरोड़ों खर्च कर रहे एसएटीआई संस्थान पर अतिरिक्त बोझ आना लाजिमी था। इसके लिए रास्ता निकाला छात्रों से फीस वसूली में वृद्धि का। इसके लिए छात्रों की फीस में दोगुनी से ज्यादा फीस बढ़ाने का फरमान जारी किया गया। फीस बढ़ाने का कारण बताया गया शासन से मिलने वाले अनुदान से कॉलेज संचालन न हो पाना। जबकि हकीकत ये है कि टीचिंग फैकल्टी पर सालाना 480 लाख रुपए खर्च होते हैं तो नॉन टीचिंग फैकल्टी पर 634 लाख रुपए लुटाए जा रहे हैं। इसमें कांग्रेस, भाजपा, बजरंग दल से लेकर लगभग सभी राजनीतिक दलों के पदाधिकारी से लेकर कार्यकर्ता भी नॉन टीचिंग स्टॉफ के तौर पर यहां से हर माह वेतन ले रहे हैं। इसके अलावा राजनेताओं के ‘भोंपू’ बने लेखकों के बेटे-बेटियां भी सालों से सरकार के अनुदान और छात्रों की फीस पर पल रहे हैं। यहीं कारण है कि सब जानते हुए भी किसी ने मामले को उजागर करने का प्रयास नहीं किया।



कांग्रेस शासनकाल में एसएटीआई को नियमों को परे रखकर करीबन 5.25 करोड़ रुपए अनुदान दिया जाता था। भाजपा शासनकाल के शुरुआती दो सालों तक तो 5.25 करोड़ रुपए ही अनुदान मिला, लेकिन बाद में नियमानुसार करीबन 2.25 करोड़ अनुदान दिया गया। अनुदान नियमानुसार होने पर छठवां वेतनमान देने पर एसएटीआई प्रबंधन को परेशानी आनी शुरु हुई। इसके लिए एसएटीआई प्रबंधन ने रास्ता निकाला छात्रों की फीस वृद्धि का। इसके लिए छात्रों की फीस दोगुनी से भी ज्यादा बढ़ाने का निर्णय लिया गया। इस निर्णय के विरोध में छात्र मुखर हुए, तो प्रबंधन सोची-समझी रणनीति के तहत छात्रों के साथ हो गया और फीस वृद्धि का विरोध करते हुए अनुदान बढ़ाने की मांग करने लगा। इसके लिए छात्रों के साथ जीवाजी कमेटी के सचिव और एसएटीआई मैनेजिंग कमेटी के अध्यक्ष (जो कांग्रेस से पूर्व सांसद भी रहे हैं) ने भी मुख्यमंत्री से मुलाकात की। मुख्यमंत्री ने अनुदान राशि के बारे में नियमानुसार कार्रवाई का आश्वासन दिया है। 


00अनुदान सही, लेकिन भर्ती गलत

एसएटीआई सूत्र बताते हैं कि अनुदान तो नियमानुसार मिल रहा है, लेकिन नॉन टीचिंग स्टॉफ की अंधाधुंध भर्ती के कारण परेशानी आ रही है। जीवाजी कमेटी के प्रदेश में दो अन्य कॉलेज भी हैं, जिनमें किसी तरह की फीस वृद्धि नहीं की जा रही है। इसका कारण है वहां नॉन टीचिंग स्टॉफ नियमानुसार है। जीवाजी कमेटी के एसजीएसआईटीएस इंदौर और एमआईटीएस ग्वालियर में नॉन टीचिंग स्टॉफ, टीचिंग स्टॉफ से कम है तो एसएटीआई विदिशा में नॉन टीचिंग स्टॉफ करीबन तीन गुना है। यही नॉन टीचिंग स्टॉफ के नाम से भर्ती नेता और उनके कार्यकर्ता छात्रों की फीस वृद्धि का कारण बन रहे हैं।

00नौकरी वाले नेता

एसएटीआई में ऐसे कई नेता नौकरी कर रहे हैं जो किसी न किसी पार्टी के पूर्णकालिक सदस्य या पदाधिकारी हैं। कांग्रेसी अध्यक्ष होने के कारण कांग्रेस के नेता ज्यादा हैं, जबकि अन्य दलों का मुंह बंद रखने केलिए दूसरे दलों के पदाधिकारियों को भी नौकरी दी गई है। इनमें अध्यक्ष के निकटतम रहे पत्रकार से लेकर डॉक्टरों के भी परिजन एसएटीआई में नौकरी कर रहे हैं। इसका भार पहले भी छात्रों पर आता था और अब पूरा का पूरा भार छात्रों पर डालने की तैयारी है।

00निजी कॉलेजों में हाल जुदा


भोपाल के नाम निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों के टीचिंग स्टॉफ भी कम है और नॉन टीचिंग स्टॉफ भी। जबकि इन कॉलेजों में बेहतर फैकल्टी और अन्य सुविधाएं हैं। निजी कॉजेलों में शासन के नियमानुसार ही भर्ती की गई है। जबकि सूत्र बताते हैं कि एसएटीआई में शासन के नियमानुसार रेशो सही   नहीं रखा गया।

00परेशानी में कर्मचारी


जीवाजी प्रबंधन ने राजनीति के लिए नॉन टीचिंग स्टॉफ को नियम के विपरीत रख लिया, लेकिन शासन ने नियमों का पालन किया तो इस स्टॉफ में से 75 फीसदी कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाना होगा। ऐसे में कई सालों से बिना राजनीतिक पॉवर के एसएटीआई में नौकरी कर रहे कर्मचारियों पर गाज गिरना तय है। सरकार से ग्रांट बढ़ाने की मांग करने पर शासन स्तर पर जांच होने पर नियम विरुद्ध भर्ती की जांच होगी और कई वास्तविक काम करने वाले कर्मचारियों का रोजगार छिन सकता है।

00ये हैं हालात  


GSITS इंदौर MITS ग्वालियर  SATI विदिशा    प्राय.इंस्टी.भोपाल1 प्राय.इंस्टी.भोपाल1
कोर्स(यूजी) 9 8 8 8 5
बीई 600 420 480 750 420
एमसीए 60 60 90 60 60
एमटेक 200 150 205 162 144
रेग्युलर फैक्ल्टी 110 81 67 105 90
टीएफओ, रेगुलर 110 50 72 0 0
कुल फैकल्टी 220 131 138 105 90
3 श्रेणी कर्मचारी 130 120 220 70 60
4 श्रेणी कर्मचारी 120 80 165 20 15
(क्र.8+9)योग 250 202 385 90 75
**आंकड़े जाहिर करते हैं कि जीवाजी कमेटी के इंदौर और ग्वालियर के कॉलेजों में नॉन टीचिंग स्टॉफ का लेबल नियमानुसार रखा गया। इसके साथ भोपाल के नामी इंजीनियरिंग कॉलेजों में भी नियम का पालन हुआ, लेकिन एसएटीआई विदिशा में सारे नियम दरकिनार किए गए।

00ये है सेलेरी का ढांचा



रेगुलर फैकल्टी पर सालाना खर्च 360 लाख
टीएफओ फैकल्टी पर सालाना खर्च 25 लाख
कांन्ट्रेट फैकल्टी पर सालाना खर्च  95 लाख
कुल सालाना खर्च 480 लाख
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तृतीय श्रेणी कर्मचारियों पर सालाना खर्च 428 लाख
चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों पर सालाना खर्च 164 लाख
तृतीय श्रेणी अस्थाई कर्मचारियों पर सालाना खर्च 22 लाख
पीडीपी स्टाफ पर सालाना खर्च 13 लाख
विल्डिंग सेंटर स्टाफ पर सालाना खर्च 5 लाख
कुल खर्च 634 लाख
**आंकड़े जाहिर करते हैं कि कई सालों से टीचिंग स्टॉफ से बहुत ज्यादा खर्च नॉन टीचिंग स्टॉफ पर किया जा रहा है। जबकि उच्च शिक्षा विभाग के नियमानुसार टीचिंग स्टॉफ से आधे खर्च तक ही नॉन टीचिंग स्टॉफ को रखा जा सकता है।
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  अनुदान तो शासन के नियमानुसार ही दी जा रही है। जब आॅडिट में देखा गया कि बिना आवश्यकता के राजनीतिक हित पूर्ति के लिए नॉन टीचिंग स्टॉफ रखा गया तो शासन ने नियमानुसार अनुदान राशि में आवश्यक फेर बदल किया। हकीकत ये है कि नॉन टीचिंग स्टॉफ को कंट्रोल कर लिया जाए तो न तो सरकार को अनुदान बढ़ाना पड़ेगा और न ही छात्रों की फीस बढ़ाने की आवश्यकता होगी। इसके अलावा कई खर्च ऐसे हैं जो इंस्टीट्यूशन के लिए राजनीति करने के लिए किए जाते हैं। जब नेता एक इंस्टीट्यूशन से राजनीतिक खर्चों की भरपाई करेगा, तो करोड़ों का अनुदान भी कम पड़ जाएगा। अगर इंस्टीट्यूशन इमानदारी से चल रहा है तो इन्हें सारे खर्च सार्वजनिक कर देना चाहिए। कई ऐसे लोगों को एसएटीआई से तनख्याय मिल रही है जो कभी नौकरी करने गए ही नहीं, बल्कि मंच से राजनीतिक पार्टियों के समर्थन में भाषण देते हैं।

गुरुचरण सिंह, वरिष्ठ भाजपा नेता/ पूर्व सदस्य एसएटीआई एवं विधायक।
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सरकार ने हमारी समिति द्वारा प्रदेश में संचालित तीनों कॉलेजों की ग्रांट कम कर दी। पहले जो ग्रांट लगभग साढ़े पांच करोड़ थी, उसे घटाकर सवा दो करोड़ कर दिया गया। सरकारी अनुदान से चलने वाले अर्द्धशासकीय कॉलेज का सुचारू संचालन ऐसी स्थिति में मुश्किल हो गया। इससे कॉलेज प्रबंधन पर अधिक भार आने लगा। इस बारे में सरकार का तर्क था कि ग्रांट के बाद जो भी भार आता है उसे स्टूडेंट की फीस से वहन किया जाए। सरकार के ग्रांट कम करने और फीस बढ़ाने के निर्देश के तहत फीस में वृद्धि का निर्णय लिया गया था। हलांकि इस निर्णय को अभी लागू नहीं किया गया है। हम लोगों ने प्रदेश सरकार से इस बारे में चर्चा की है और हमारा प्रयास है कि फीस वृद्धि का बोझ स्टूडेंट पर न आए। इसके लिए सतत प्रयास किए जा रहे हैं। नॉन टीचिंग ज्यादा रखने संबंधी आरोप निराधार हैं। एसएटीआई में मानक मापदण्डों के अनुसार ही स्टॉफ नियुक्त है। हमने पिछले 5 साल में कोई नियुक्ति नहीं की है। नॉन टीचिंग स्टॉफ ज्यादा होने की बात भाजपा के लोग करते हैं। वह इस तरह के आरोप इसलिए लगाते हैं, जिससे उन्हें ग्रांट न बढ़ाने पड़े। फीस वृद्धि का निर्णय भी केवल एसएटीआई विदिशा में नहीं लिया गया, बल्कि अनुदान की राशि न बढ़ने पर प्रदेश के तीनों कॉलेजों में मजबूरन फीस बढ़ानी होगी

प्रतापभानु शर्मा
सचिव महाराजा जीवाजीराव एजुकेशन सोसायटी एवं अध्यक्ष, एसएटीआई मैनेजिंग कमेटी

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