Tuesday 6 December 2011

पैसे के लालच में आतंकियों के फर्जी ड्राइविंग लाइसेंस बनवा देते हैं एजेंट

‘काल’ के दलाल!



परिवहन विभाग में मिनटों में काम करवाने के लिए सक्रिय दलाल यानि एजेंट और विभाग के बाबू यमदूत बनते जा रहे हैं। जिलों के आरटीओ आॅफिस ही नहीं राजधानी के आरटीओ आॅफिस में भी बिना दलालों के पत्ता नहीं हिलता। ये अवैध दलाल केवल आरटीओ विभाग के काम ही नहीं करवाते, बल्कि कागज पूरे नहीं होने पर फर्जी तरीके से भी काम करवा देते हैं। यही कारण है कि रासिद नाम के आरटीओ एजेंट ने शेख मुजीब और असलम जैसे खतरनाक आतंकियों के ड्रायविंग लायसेंस बनवा दिए। लेन-देन और दलालों के लिए बदनाम आरटीओ विभाग में जारी धांधली को बताती प्रमोद त्रिवेदी की स्टोरी...

ड्रायविंग लायसेंस एक महत्वपूर्ण दस्तावेज होता है, जो हर शासकीय विभाग में मान्य है। परिवहन विभाग से जारी होने वाले इस महत्वपूर्ण दस्तावेज के आधार पर पासपोर्ट भी जारी हो सकता है, लेकिन परिवहन विभाग इस दस्तावेज को जारी करने में पूरी तरह लापरवाह है। यही कारण है कि अबु सलेम जैसे खतरनाक हत्यारे और मोनिका बेदी ने भोपाल में फर्जी ड्राइविंग लायसेंस बनवाए और पासपोर्ट बनाकर हिंदुस्तान छोड़कर भाग गए थे। इसके बाद भी परिवहन विभाग में दलालों की कारस्तानी पर अंकुश नहीं लगा। विगत 11 अक्टूबर 2011 को खतरनाक सिमी आतंकी शेख मुजीब के नार्को टेस्ट में खुलासा हुआ कि उसने भोपाल परिवहन कार्यालय से ड्रायविंग लायसेंस बनवाया था। ये लायसेंस मुजीब को एक आरटीओ एजेंट ने बनवाकर दिया था। इतना ही नहीं लायसेंस के लिए आवश्यक दस्तावेज भी एजेंट ने फर्जी तरीके से तैयार करके विभागीय बाबूओ से मिलकर लायसेंस मुहैया करा दिया। एटीएस ने राहिद नाम के आरटीओ एजेंट को गिरफ्तार कर लिया। आतंकी लायसेंस दिखाकर किराए से मकान, सिम लेते थे तथा पुलिस चेकिंग के दौरान भी ड्रायविंग लायसेंस उनकी खासी मदद करता था। इस खुलासे के बाद जाहिर हो गया है कि परिवहन विभाग केवल लेन-देन ही नहीं कर रहा, बल्कि अप्रत्यक्ष तौर पर रुपयों के लिए आतंकियों की मदद भी कर रहा है।


कमाई के खातिर सब जायज

एक चार पहिया वाहन के लायसेंस की फीस 370 रुपए है। इसके लिए आवेदक को निर्धारित प्रपत्र में आवेदन भरकर आरटीओ आफिस में जमा करना होता है, लेकिन केवल 1 फीसदी लायसेंस ही सीधे आवेदक उपस्थित होकर बनवाता है। बाकि दलाल के सहारे से ही लायसेंस बनते हैं। भोपाल आरटीओ आफिस के एक दलाल ने बताया कि सीधे लायसेंस बनवाने में आवेदन में एक भी गलती हो जाए तो कई चक्कर लगाने पड़ते हैं। इसके बाद भी लायसेंस बनने की कोई गारंटी नहीं है। दलाल एक लायसेंस के 12 सौ रुपए लेता है तो समय पर लायसेंस बनवाकर देता है। आवेदक को केवल फोन करके फोटो खिंचवाने के लिए बुलाया जाता है। ट्रायल से लेकर बाकी औपचारिकताएं रुपए की दम पर दलाल पूरी करता है। आरटीओ आॅफिस में बाबू से लेकर अधिकारियों को इस बात से कोई सरोकार नहीं होता कि दलाल ने जो कागजात संलग्न किए हैं, वे फर्जी तो नहीं हैं। इसी का फायदा उठाकर आतंकी आसानी से लायसेंस बनवा लेते हैं।


कई बदमाश भी बन गए हैं एजेंट

आरटीओ आॅफिस में दलाल अघोषित तौर पर काम करते हैं। आरटीओ बताते हैं कि लोग अपना काम करवाने के लिए दलाल का सहारा लेते हैं, इसमें विभाग की कोई गलती नहीं है। इसी लिए आरटीओ को इससे भी कोई मतलब नहीं है कि दलाल का चरित्र कैसा है। इसी का फायदा उठाकर कुछ आपराधिक प्रवृत्ति के लोग भी दलाल बन गए हैं। ऐसे लोग रुपए के लालच में आसानी से आतंकियों के मददगार बन जाते हैं।



एक साल पहले सिमी गुर्गोंं से इंदौर में ड्रायविंग लायसेंस बनवाने की जानकारी मिलने व उनके पास से इंदौर आरटीओ की सील बरामद होने से स्थानीय आरटीओ में हडकंप मचा था। एटीएस के हत्थे चढेÞ सिमी गुर्गों ने पूछताछ में जो जानकारी दी थी, उसमें बताया था कि उन्होंने इंदौर, भोपाल, रतलाम, लखनऊ में ड्राइविंग लायसेंस बनवाए थे ये लायसेंस फर्जी नामों से बनवाए गए थे। इनका उपयोग वे शहरों में मकान किराए पर लेने में भी करते थे। यह लायसेंस वर्ष 2007 में बनवाए गए थे। इंदौर में बने लायसेंस में किन एजेंटों ने मदद की व किस अधिकारी ने किन दस्तावेजों के आधार पर इनको बनाया इसकी जांच भी की गई थी। सिमी के गुर्गे अबू फैजल, साजिद, फरहान ने खजराना में रहने के दौरान आरटीओ के एजेंटों से साफ किया था जिस पर लायसेंस बनवाए गए थे। इसमें अधिकारियों से एजेंटों ने काम करवाया था। इससे इंदौर आरटीओ आॅफिस में काफी दिनों तक खलबली रही और बाद में फिर दलाल और अधिकारियों की सांठगांठ से फर्जी काम होने लगे।




सिमी तथा इंडियन मुजाहिद्दीन से जुड़े होने के आरोप में गिरफ्तार किए गए आरोपियों के लायसेंसों के भी सघन पड़ताल का अध्याय खुलने जा रहा है। भोपाल तथा लखनऊ से बनवाए गए ड्रायविंग लायसेंस के संबंध में एटीएस को जेल के भीतर जाकर पूछताछ करने की मंजूरी अदालत ने दे दी है। सिमी तथा इंडियन मुजाहिद्दीन संगठन के संबंध रखने के अरोपियों ने भोपाल तथा लखनऊ आरटीओ से ड्राइविंग लायसेंस भी बनाए थे। इन लाइसेंसों के निर्माण में जिन दस्तावेजों का उपयोग   किया गया, वे कितने सही हैं और कितने फर्जी, इस सवाल का हल खोजने के लिए अब एटीएस ने अपनी पड़ताल को नया रुख दिया है। जबलपुर सीजेएम शरद चंद सक्सेना की कोर्ट से इस बात की अनुमति मांगी गई कि जेल में निरुद्ध शेख मुजीब और असलम से जेल के भीतर जाकर पूछताछ की इजाजत दी जाए। आरोपियों की ओर से अधिवक्ता नईम खान ने अदालत में पक्ष रखते हुए कहा कि इससे उन्हें कोई एतराज नहीं है। जिला अभियोजन अधिकारी के पक्ष को सुनने के बाद अदालत ने अर्जी पर अपनी मंजूरी दे दी है। सूत्रों के अनुसार लायसेंस निर्माण के मामले में एजेंट की भूमिका संदिग्ध है। इसके लिए उपयोग में लाए गए निवास के दस्तावेज एजेंट द्वारा उपलब्ध कराए गए थे। एटीएस एजेंट और आरोपियों के ताल्लुकातों पर भी गहराई से पड़ताल करेगी। एटीएस ने अपनी तफ्तीश में इन बिन्दुओं को शामिल किया है कि लायसेंस के लिए किस तरह के दस्तावेजों का इस्तेमाल किया गया है। पता चला है कि आरोपियों द्वारा कुछ फर्जी दस्तावेज प्रस्तुत किए गए हैं। पूछताछ के बाद कुछ नए खुलासों की उम्मीद जताई जा रही है। 



प्रदेश के आतंक निरोधी दस्ते द्वारा राजधानी और जबलपुर से पकड़े गए इंडियन मुजाहिदीन के कुख्यात आतंकी के मामले में खुलासा हुआ कि शेख मुजीब ने भोपाल आरटीओ कार्यालय से ड्रायविंग लायसेंस भी बनवा लिए थे। इनकी मदद से उसने दोनों शहरों में तमाम मोबाइल सिम खरीदीं और मकान भी किराए पर लिए। दरअसल वह लखनऊ में अयोध्या का फैसला देने वाले जजों की हत्या करना चाहता था। इस मामले में एटीएस ने भोपाल से एक व लखनऊ से तीन और गिरफ्तारियां की हैं। ये सब शेख मुजीब के 11 अक्टूबर 2011 को हुए नार्को टेस्ट के बाद हुआ। अबू फैजल के साथ जबलपुर में पकड़ा गया शेख मुजीब वर्ष 2008 में अहमदाबाद में हुए धमाकों का नामजद आरोपी है। उसने स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया (सिमी) और इंडियन मुजाहिदीन के गठजोड़ में भूमिका निभाई है। इस महीने 11 अक्टूबर को जब अहमदाबाद में उसका नार्को टेस्ट हुआ तो तमाम बातें सामने आई। शेख मुजीब ने अपना नाम अहमद कलान रख लिया था। उसने भोपाल आरटीओ आफिस से ड्राइविंग लाइसेंस बनवा लिया था। एड्रेस प्रूफ बनाने के लिए आरटीओ के एक दलाल राहिद ने उसकी मदद की थी। राहिद को एटीएस ने गिरफ्तार कर लिया है। इसी तरह शेख मुजीब ने लखनऊ आरटीओ आफिस से भी एक ड्राइविंग लाइसेंस बनवाया था। इसमें बीमा पालिसी और फर्जी राशन कार्ड बनवाने वाले पप्पू सरदार, एक मल्होत्रा और एक अन्य युवक को एटीएस ने गिरफ्तार कर लिया है। शेख मुजीब पिछले साल 30 सितंबर को आए अयोध्या फैसले के बाद लगातार लखनऊ में रहा था। वहां उसने किराए का मकान लिया था। उसने अपने साथियों के साथ मिलकर रामजन्म भूमि का फैसला देने वाले तीनों हाईकोर्ट जजों की हत्या की साजिश रची थी। शेख मुजीब ने ही अबू फैजल के साथ मिलकर आतंकी संगठनों को पैसा देने के लिए भोपाल में 14 किलो सोने की डकैती की थी। इसके साथ ही प्रदेश के छह बैंकों में डकैतियां की थीं। 



शेख मुजीब वर्ष 2008 में अहमदाबाद में हुए ब्लास्ट में साइकिल पर जगह-जगह बम रखकर कई लोगों की जान ले चुका है। वर्ष 2008 के अहमदाबाद धमाकों में वह नामजद आरोपी है। अहमदाबाद के बाद आतंकियों ने सूरत को दहलाने की कोशिश की थी। सूरत में एक दर्जन से ज्यादा जगहों पर बम रखने वाले कयामुद्दीन कपाड़िया को एटीएस टीम ने उज्जैन से गिरफ्तार किया था। वह भोपाल और उसके आसपास के इलाके में छिपा रहा था। मुजीब जयपुर बम धमाकों में वांटेड शेखुर्रहमान का भी साथी रहा है। मुजीब के देशभर में वांटेड इंडियन मुजाहिदीन का सरगना तौकीर उर्फ डाक्टर सुभान के प्रदेश में पकड़े गए सफदर नागौरी और उसके साथियों से गहरे संबंध रहे हैं। 




किसी वारदात में जब फर्जी दस्तावेजों से लायसेंस बनने की खबर आती है तो हम अतिरिक्त सतर्कता बरतते हैं। जालसाजों से बचने का तो प्रयास किया जाता है, लेकिन जालसाज तो नकली नोट तक बना लेते हैं। एजेंट का किसी तरह का पुलिस वेरीफिकेशन नहीं कराया जाता और न ही परिवहन विभाग एजेंट नियुक्त करता है। जनता अपनी सुविधा के लिए निजी तौर पर इनकी सेवाएं लेती है। इसमें परिवहन विभाग का कोई दखल नहीं होता है।
पीएस बम्हरोलिया, आरटीओ, भोपाल

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